शनिवार, 22 अगस्त 2009

गीत: फैलाकर सुगंध मुस्काती पंखुडियाँ

फैलाकर सुगंध
मुस्काती पखुडियाँ,
बरस रहीं या
खोज रहीं हैं
अलगनियां?...

वाचक हैं
ये सद्भावों की,
पढ़कर कथा
अभावों की भी,
लोकतंत्र में
नहीं हो सकीं
हैं ये वंचक
नेताओं सी।
आशाओं की
अभिभावक
नन्ही-मुनियाँ...

मोहक क्षणजीवी
सपने सी,
रूप बदलती हैं
अपने सी।
छोड़ नीद
खो गईं अकेली,
संकट में
मोहक सपने सी।
निर्मम-निर्मोही
श्रावक हैं
या बनिया?...

हर अंजुरी को
महका देंगी,
गुल-गुलशन को
बहका देंगी,
लुक-छिपकर,
काना-फूसी कर,
पर घर में
ताके-झाँकेगी।
सलिल धार सम
देख रहीं हैं
जग-दुनिया...
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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

गीत: कलम गीत की फसलें बोती

कलम गीत की
फसलें बोती...

शब्द सिपाही का
संबल बन,
नेह नर्मदा
या चम्बल बन,
सलिल तरंगें
अग-जग धोतीं...

परम्परा पिंजरे

में सिसके,
तोड़-छोड़
जाने में हिचके,
सहे पीर पर
धीर न खोती...

मन कोमल पर
तन कठोर है,
सांझ सुरमई
विमल भोर है।
स्वप्न सीप में,
सृजती मोती...

कभी खास है,
कभी आम है।
नाम अनेकों
पर अनाम है।
अरमानों की
मुखर संगोती...

फूल-शूल
पाषाण-धूल को।
शिखर-गगन को,
भूमि-मूल को
चुप अपने
कन्धों पर ढोती...

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गीत: अपनेपन का अर्पित...

गीत
अपनेपन का अर्पित,
अपनों को मान-पान...

गिरते हम, उठते हम।
रुकते हम, चलते हम।
बाधा से तनिक नहीं
डरते हम। थमते हम.
पैर जमा धरती
पर- छू लेंगे आसमान...

हार नहीं मानेंगे
तम् से रार ठानेंगे।
अक्षौहिणी तुम ले लो,
मात्र कृष्ण मांगेंगे।
पाञ्चजन्य फूंकेंगे,
होंगे हम भासमान...

कर्म-कथा कहते हैं,
मर्म-व्यथा सुनते हैं।
पर्वत के पत्थर से-
रेवा सम बहते हैं।
लहर-लहर, भंवर-भंवर
ऊगेंगे शत विहान...

दस दिश में गूंजेंगे,
नए मूल्य पूजेंगे।
संकट के समाधान
युक्ति लगा बूझेंगे।
मेहनती-प्रयासी ही
भाई-बंधु, खानदान...

ऊषा की लाली हम,
दोपहरी प्याली हम।
संध्या की मुसकाहट,
निशा नवल काली हम।
दस दिश में गूंजेंगे-
सरगम-सुर, ताल-तान...

मन्दिर में शंख-नाद
मस्जिद में हम अजान।
कंकर हम, शंकर हम,
विधि-हरि-हर अक्षर हम।
अजर-अमर, अटल-अगम।
कदमों के हम निशान...

शेष नाग फुफकारें।
तूफां बन हुंकारें।
मधुवन के मधुकर हम,
कलियों पर गुन्जारें।
अमिय-गरल हैं हमको-
सत्य कहें प्रिय सामान...

आ जाओ, लगो गले।
मिल पायें भले गले।
दगा दगा को देन हम-
हर विपदा हाथ मले-
हृदयों के कमल खिले
मन का मन करे मान...
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रविवार, 16 अगस्त 2009

नवगीत: मगरमचछ सरपंच... आचार्य संजीव् 'सलिल'

गीत

मगरमचछ सरपंच
मछलियाँ घेरे में
फंसे कबूतर आज
बाज के फेरे में...

सोनचिरैया विकल
न कोयल कूक रही
हिरनी नाहर देख
न भागी, मूक रही
जुड़े पाप ग्रह सभी
कुण्डली मेरे में...

गोली अमरीकी
बोली अंगरेजी है
ऊपर चढ़ क्यों
तोडी स्वयं नसेनी है?
सन्नाटा छाया
जनतंत्री डेरे में...

हँसिया फसलें
अपने घर में भरता है
घोड़ा-माली
हरी घास ख़ुद चरता है
शोले सुलगे हैं
कपास के डेरे में...

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