अम्ब विमल मति दे
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....
बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....
कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....
हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....
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शनिवार, 17 जनवरी 2009
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हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
जवाब देंहटाएंअम्ब विमल मति दे.....
आज इसी प्रार्थना की जरूरत है।
अरे आप जबलपुर में है-एक दो दिन में सारे ब्लॉगर्स की मीट करने का विआर है. अपना फोन नम्बर दिजियेगा- मेरा नम्बर जबलपुर में ०९८ २६१ २१४३१ है, कृप्या फोन करें. अभी फरवरी तक भारत में ही हूँ.
जवाब देंहटाएंसादर
समीर लाल
Pranaam!
जवाब देंहटाएंAap Itna sundar likhate hain..
Hame bhi apne aashirwaad se nawajen..
kulwant singh
http://kavikulwant.blogspot.com