शनिवार, 17 जनवरी 2009

अम्ब विमल मति दे

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....

बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....

कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....

हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....

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3 टिप्‍पणियां:

  1. हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
    अम्ब विमल मति दे.....
    आज इसी प्रार्थना की जरूरत है।

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  2. अरे आप जबलपुर में है-एक दो दिन में सारे ब्लॉगर्स की मीट करने का विआर है. अपना फोन नम्बर दिजियेगा- मेरा नम्बर जबलपुर में ०९८ २६१ २१४३१ है, कृप्या फोन करें. अभी फरवरी तक भारत में ही हूँ.

    सादर

    समीर लाल

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  3. Pranaam!
    Aap Itna sundar likhate hain..
    Hame bhi apne aashirwaad se nawajen..
    kulwant singh
    http://kavikulwant.blogspot.com

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