गीत
श्वास गीत, आस-प्यास अंतरा।
सनातन है रास की परम्परा । ।
तन का नही, मन का मेल जिंदगी।
स्नेह-सलिल-स्नान ईश- बन्दगी।
नित सृजन ही सभ्यता औ' संस्कृति।
सृजन हेतु सृष्टि नित स्वयंवरा। ।
आदि-अंतहीन चक्र काल का।
सादि-सांत लेख मनुज-भाल का।
समर्पण घमंड, क्रोध, स्वार्थ का।
भावनाविहीन ज्ञान कोहरा । ।
राग-त्याग नहीं सत्य-साधना।
अनुराग औ' आसक्ति पूत भावना।
पुरातन है प्रकृति-पुरूष का मिलन।
निरावरण गगन, धारा दिगंबरा। ।
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मंगलवार, 17 मार्च 2009
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वाह !! वाह !! और वाह !!
जवाब देंहटाएंइसके आगे प्रशंशा को शब्द ढूंढ़ना असंभव हो जाता है.....अद्भुद....!!