रविवार, 15 मार्च 2009

गीत सोये बहुत देव अब जागो आचार्य संजीव 'सलिल'

गीत

सोये बहुत देव अब जागो

आचार्य संजीव 'सलिल'

सोये बहुत
देव! अब जागो...

तम ने
निगला है उजास को।
गम ने मारा
है हुलास को।
बाधाएँ छलती
प्रयास को।
कोशिश को
जी भर अनुरागो...

रवि-शशि को
छलती है संध्या।
अधरा धरा
न हो हरि! वन्ध्या।
बहुत झुका
अब झुके न विन्ध्या।
ऋषि अगस्त
दक्षिण मत भागो...

पलता दीपक टेल
त ले अँधेरा ।

हो निशांत
फ़िर नया सवेरा।
टूटे स्वप्न
न मिटे बसेरा।
कथनी-करनी
संग-संग पागो...

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3 टिप्‍पणियां:

  1. Ujas ki kamna nihsandeh sakaratmak soch ka sopan hai.

    http://pranamyasahitya.blogspot.com/

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  2. अंदाजा लगा रही हूँ की इस मधुर मनमोहक गीत को सस्वर सुनना कितना आनंददाई होगा,जिसका मौन पाठ ही रसमग्न किये दे रहा है.....

    बहुत बहुत सुन्दर..

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