शनिवार, 14 नवंबर 2009

नवगीत: दवा ज़हर की सिर्फ ज़हर है... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

दवा ज़हर की
सिर्फ ज़हर है...
*
विश्वासों को
तजकर दुनिया
सीख-सिखाती तर्क.
भुला रही
असली नकली में
कैसा, क्या है फर्क?
अमृत सागर सुखा
पूछती कहाँ खो गयी
हर्ष-लहर है...
*
राष्ट्र भूलकर
महाराष्ट्र की
चिंता करता राज.
असल नहीं, अब
हमें असल से
ज्यादा प्यारा ब्याज.
प्रकृति पुत्र है,
प्रकृति का शोषक
ढाता रोज कहर है....
*
दुनिया पूज रही
हिंदी को.
हमें न तनिक सुहाती.
परदेशी भाषा
अन्ग्रेज़ी हमको
'सलिल' लुभाती.
लिखीं हजारों गजल
न लेकिन हमको
ज्ञात बहर है...
*****************

5 टिप्‍पणियां:

  1. राष्ट्र भूलकर महाराष्ट्र की चिंता करता राज
    असल की चिंता नहीं, हमको प्यारा व्याज

    बहुत खूब !

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  2. लाजवाब श्ब्द जैसे चीख चीख कर कह रहे हैं कि ये आचार्य सलिल जी ही लिख सकते हैं बहुत सुन्द। बधाई

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  3. आशीष कुमार 'अंशु' said...
    Sundar hai...

    14 November, 2009 2:39 AM
    गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...
    बेहतरीन रचना
    आपका आभार

    14 November, 2009 6:48 AM
    जबलपुर-ब्रिगेड said...
    संजीव जी
    की लेखनी की
    कोई सानी नहीं

    14 November, 2009 6:49 AM

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