सोमवार, 10 अगस्त 2009

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: हिंदी है. --'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

आचार्य संजीव 'सलिल'

जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.

लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.

गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,

ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.

लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.

प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.

स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.

बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.

पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.

गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.

अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.

ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.

कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.

झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.

कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.

गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.

रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.

आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.

शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.

तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.

रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

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2 टिप्‍पणियां:

  1. स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

    स्वतंत्रता रूपी हमारी क्रान्ति करवटें लेती हुयी लोकचेतना की उत्ताल तरंगों से आप्लावित है।....देखें "शब्द-शिखर" पर !!

    जवाब देंहटाएं
  2. PRAN SHARMA ने कहा…
    JO KUCHH HAI IS DESH MEIN HAI
    SAARAA KAA SARAA HINDI HAI
    HAR HINDI BHARAT MAA KE
    MAATHE KEE UJJWAL BINDI HAI
    KITNA SATYA KAHAA HAI ACHARYA SANJEEV " SALI" JEE NE.
    RASHTRIYA BHAVNAAON SE PARIPOORN
    UNKEE IS UTKRISHT KAVITA KE LIYE
    BADHAAEEYAN HEE BADHAAEEYAN.

    August 16, 2009 3:11 PM


    प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…
    आचार्य जी प्रणाम ,,
    कमेन्ट क्या करू अभिभूत हूँ ,,
    और नतमस्तक हूँ की किस तरह आप ने ,,
    भारत की अनेकता में एकता दर्शाती संस्क्रती को
    एक कविता में पिरो दिया
    मेरा प्रणाम स्वीकार करे
    सादर
    प्रवीण पथिक

    August 16, 2009 6:43 PM


    टिप्पणी हटा दी गई
    यह पोस्टलेखक के द्वारा निकाल दी गई है.

    August 16, 2009 10:10 PM


    अर्चना तिवारी ने कहा…
    आचार्य जी आपकी कविता तो माँ भारती की विशेषता का गुणगान कर रही है...नमन

    August 16, 2009 10:11 PM


    अनन्या ने कहा…
    आचार्य जी की रचना है, उत्कृष्ट होनी ही है।

    August 17, 2009 10:12 AM


    अनिल कुमार ने कहा…
    ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
    आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
    शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
    तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
    रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
    हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

    आभार सलिल जी।

    August 17, 2009 11:41 AM


    मोहिन्दर कुमार ने कहा…
    राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत रचना के लिये सलिल जी का आभार

    August 17, 2009 11:56 AM

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