सोमवार, 10 अगस्त 2009

गीत: श्रम के सुमन चढायेंगे

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

श्रम के सुमन चढायेंगे.

आचार्य संजीव 'सलिल'

राष्ट्र देव के श्री चरणों में,
श्रम के सुमन चढायेंगे.
संघर्षों के पथ पग धर,
निर्माणों पर बलि जायेंगे.....

हम से देश, देश से हम हैं.
मेहनत ही अपना परचम है.
मन्दिर, मस्जिद, गिरजा भूलो
एक देव युग-युग से श्रम है.
नेह नर्मदा नित्य नहाकर
जीवन सफल बनायेंगे...

सार-सार को छाँट-छाँटकर,
पाषाणों को काट-काटकर.
अर्जन- अर्चन में सब भागी-
श्रेय सभी लें बाँट-बाँटकर.
समरसता का मूलमंत्र हम
अग-जग में गुंजायेंगे...

माटी से मीनार गढ़ेंगे.
मंजिल तक सब साथ बढ़ेंगे.
बलिदानी-बलिपंथी हैं हम-
एक नहीं शत शीश चढेंगे.
हर कीमत देंगे, लेकिन पग
पीछे नहीं हटायेंगे.....

'मावस में बन दीप जलेंगे.
साथ समय के सदा चलेंगे.
कर्म करेंगे निरासक्त हो,
कभी न अपने दिवस ढलेंगे.
सबसे-सबके लिए-सभी का
ध्येय मार्ग अपनाएंगे....

अधिकारों का तेल डालकर,
कर्तव्यों के दीप बालकर.
रौशन कर दें सारी दुनिया,
''सलिल'' कदम रख हर सम्हालकर.
कर्मयोग के साधक हम सब
कर्मव्रती कहलायेंगे...

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1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया कविता श्रम के सुमन चढायेंगे बहुत सुन्दर भावः आभार सलिल जी

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