गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

हम समझ ही नहीं पाए

कौन क्या है?

और तुमने यह न समझा

मौन क्या है?

रहकर भी रहे क्यों

दूर हरदम?

कौन जाने हैं अजाने

भाव कितने?

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

चाहकर भी तुम न हमको

चाह पाए।

दाहकर भी हम न तुमको

दाह पाए।

बांह में थी बांह लेकिन

राह भूले-

छिपे तन-मन में रहे

अलगाव कितने?

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

अ-सुर-बेसुर से नहीं,

किंचित शिकायत।

स-सुर सुर की भुलाई है

क्यों रवायत?

नफासत से जहालत क्यों

जीतती है?

बगावत क्यों सह रही

अभाव इतने?

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

खड़े हैं विषधर, चुनें तो

क्यों चुनें हम?

नींद गायब तो सपन

कैसे बुनें हम?

बेबसी में शीश निज अपना

धुनें हम-

भाव नभ पर, धरा पर

बेभाव कितने?

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

सांझ सूरज-चंद्रमा संग

खेलती है।

उषा रुसवाई, न कुछ कह

झेलती है।

हजारों तारे निशा के

दिवाने है-

'सलिल' निर्मल पर पड़े

प्रभाव कितने?

वक़्त ने दिल को दिए हैं

घाव कितने?...

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपका लिखा इसी तरह लम्बे समय तक पढ़ती रही तो,संभवतः कुछ वर्ष बाद मैं भी थोडा बहुत लिख पाउंगी....सिम्पली ग्रेट.....

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