गीत
चलो हम सूरज उगायें
चलो!
हम सूरज उगाएं
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरीतिमा मिल हम उगायें...
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सभी सब के काम आयें...
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलाएं...
आत्म में विश्वातं देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूंजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
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बहुत सुंदर रहा....महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंवाह !! वाह !! वाह !!
जवाब देंहटाएंप्रशंशा को शब्द नही मेरे पास.......
भावपूर्ण सरस अतिसुन्दर कविता......
ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए शुभ्कामनाए
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए शुभ्कामनाए
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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बहुत अच्छी रचना, सुन्दर
जवाब देंहटाएंउमंग से भरपूर, विशवास भरती जीवन में
बहुत ही सुंदर रचना, ब्लॉग जगत में आपका स्वागत
जवाब देंहटाएंgood, narayan narayan
जवाब देंहटाएंSundar rachna. Swagat Blog Parivar mein.
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