नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
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bhavpoorn manmohak geet ..
जवाब देंहटाएंbahut achchha laga.
lekhni ko pranam.
खाली हाथ?
जवाब देंहटाएंन रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
बस,इस जीवन दर्शन को अपना कर जीवन पथ पर चल पड़े व्यक्ति तो जन्म सार्थक हो जाए...
प्रेरणाप्रद प्रभावशाली मुग्धकारी अद्वितीय रचना...वाह !!!
प्रेरक सुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंसादर!
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
जवाब देंहटाएंदेखोगे मन मलिन धुल रहा ...
कारगर उपाय है ...
प्रेरक रचना ..
आभार !