मंगलवार, 16 जून 2009

गीत: राम कथाएँ - सलिल

गीत

सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं।
सबकी अपनी-अपनी करुण-व्यथाएँ हैं....


अपने-अपने पिंजरों में हैं कैद सभी।
और चाहते हैं होना स्वच्छंद सभी।
श्वास-श्वास में कथ्य-कथानक हैं सबमें-
सत्य कहूँ गुन-गुन करते हैं छंद सभी।
अलग-अनूठे शिल्प-बिम्ब-उपमाएँ हैं
सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....


अक्षर-अजर-अमर हैं आत्माएँ सबकी।
प्रेरक-प्रबल-अमित हैं इच्छाएँ सबकी।
माँग-पूर्ती, उपभोक्ता-उत्पादन हैं सब।
खन-खन करती मोहें मुद्राएँ सबकी।
रास रचता वह, सब बृज बालाएँ है
सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....


जो भी मिलता है क्रेता-विक्रेता है।
किन्तु न कोई नौका अपनी खेता है।
किस्मत शकुनी के पाँसों से सब हारे।
फिर भी सोचा अगला दाँव विजेता है।
मौन हुई माँ, मुखर-चपल वनिताएँ हैं।
सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....


करें अर्चना स्वहितों की तन्मय होकर।
वरें वंदना-पथ विधि का मृण्मय होकर।
करें कामना, सफल साधना हो अपनी।
लीन प्रार्थना में होते बेकल होकर।
तृप्ति-अतृप्ति नहीं कुछ, मृग- त्रिश्नाएं हैं।
सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....


यह दुनिया मंडी है रिश्तों-नातों की।
दाँव-पेंच, छल-कपट, घात-प्रतिघातों की।
विश्वासों की फसल उगाती कलम सदा।
हर अंकुर में छवि है गिरते पातों की।
कूल, घाट, पुल, लहर, 'सलिल' सरिताएँ हैः।
सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....

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9 टिप्‍पणियां:

  1. आचार्य जी!

    यह मेरा पहला प्रयास है आपसे संपर्क स्थापित करने का. ऐसा मैं सोचता हूँ कि आप अन्यथा न लेंगे.

    आपकी दोहा कक्षाओं को अपने डेस्क टॉप पर डाल लिया है. इस कोशिश में हूँ कि विचारार्थ प्रस्तुत करने की हिम्मत जुटा सकूँ.

    आज के दौर में बड़ी ही सामयिक सीख है कि:-

    करें अर्चना स्वहितों की तन्मय होकर।
    वरें वंदना-पथ विधि का मृण्मय होकर।
    करें कामना, सफल साधना हो अपनी।
    लीन प्रार्थना में होते बेकल होकर।
    तृप्ति-अतृप्ति नहीं कुछ, मृग- त्रिश्नाएं हैं।
    सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं.....

    आदर सहित-
    मुकेश कुमार तिवारी
    १४ अप्रैल २००९, २.०१ ए. एम.

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  2. सलिल जी!

    आपकी कविता मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगी.

    आपके ब्लॉग ने मुझे सचमुच प्रभावित किया है.

    प्रेम फर्रुखाबादी
    २६ अप्रैल २००९, १२.५२ ए. एम.

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  3. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा और अपने बहुत ही सुन्दर लिखा है.

    बबली
    अप्रैल ३०, २००९, १०.२१ पी.एम.

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  4. सुन्दर हिंदी में एक सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.

    हेम पाण्डेय
    मई २-२००९,, ११.४७ पी. एम्.

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  5. आपने मेरे ब्लोक पर टिप्पणी दी...और आपके सुझावों से मुझे आगे लिखने के लिए मार्ग-दर्शन मिलेगा...आपको हार्दिक धन्यवाद...

    मैं गजल की शौकीन हूँ...आगे भी अपनी गलतियों पर आपका मार्गदर्शन चाहूँगी...उम्मीद है कि आप इस पर जरूर ध्यान देंगे...

    आपका ब्लॉग पढ़ा...काफी अच्छा लगा...खासकर भजनवाला...समय निकालकर बाकी भी जरूर पढूँगी....

    धन्यवाद...

    jarokha

    मई ७, २००९, ८.३८ ए.एम.

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  6. आचार्य सलिल जी
    सादर अभिवादन
    बहुत भावपूर्ण सुन्दर शब्दों में पिरोई रचना है . धन्यवाद्.
    महेंद्र मिश्र
    जबलपुर.

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  7. बहुत सुन्दर रचना है आचार्य जी.

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  8. आनन्द आ जाता है आपको पढ़कर. बहुत ही उम्दा कृति.

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  9. vastav men aacharya ji aapko padhkar anand aagaya, anupam manoharini rachna ke liye badhai.

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