शुक्रवार, 5 जून 2009

नवगीत: दीप-वर्तिका सदृश जलेंगे -आचार्य संजीव 'सलिल'

नव-गीत

दीप-वर्तिका

सदृश जलेंगे

आपद-विपदा

विहँस सहेंगे...

मौत वरेंगे पर न मरेंगे॥

हैं लघु कण

यह सत्य जानते,

पर विराट से

समर ठानते।

पचा न पायें

आप हलाहल,

धार कंठ में-

हम उबारते।

शिवता-सुन्दरता

के पथ पर-

सत का कर गह-

नित्य बढ़ेंगे...

मौत वरेंगे पर न मरेंगे॥

कहीं न परिमल

हर दल दलदल।

भ्रमर-दंश से

दंशित शतदल।

सलिल धार

अनवरत प्रवाहित।

शब्द अमरकंटक-

से प्रति पल।

लोक नर्मदा

नीति वर्मदा

कार्य शर्मदा

सतत करेंगे...

मौत वरेंगे पर न मरेंगे॥

अजर-अमर हैं

हम अक्षर हैं।

नाद-ताल हैं

सरगम-स्वर हैं।

हम अनादि हैं,

हम अनंत हैं।

सादि-सांत हम

क्षण-भंगुर हैं॥

सच कहते हैं

सब जग सुन ले,

सत-शिव-सुंदर

'सलिल' वरेंगे ...

मौत वरेंगे पर न मरेंगे॥

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