शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

'रिश्ते'

दिल को दिल से जोड़ते रिश्ते मिलते हाथ
अपनी मंजिल पा सकें कदम अगर हों साथ

'सलिल' समूची ज़िन्दगी रिश्तों की जागीर
रिश्तों से ही आदमी बने गरीब-अमीर

रिश्ते-नाते घोलते प्रति पल मधुर मिठास
दाना रिश्ते पालते नादां करें खलास

रिश्ते ही इंसान की लिखते हैं तकदीर
रिश्ते बिन नाकाम ही होती हर तदबीर

बिगड़ी बात बने नहीं बिन रिश्ते लो मान
रिश्ते हैं तो लुटा दो एक दूजे पर जान

रिश्ते हैं रसनिधि अमर रिश्ते हैं रसखान
रिश्ते ही रसलीन हो हो जाते भगवान

रिश्ते ही करते अता आन- बान औ' शान
रिश्ते हित शैतान भी बन जाता इंसान

रिश्ते होली दिवाली रिश्ते क्रिसमस ईद
रिश्ते-नाते निभाना सचमुच 'सलिल' मुफीद

रिश्ते मधुर न रख सके लडे हिंद औ' पाक
रिश्तों में बिखराव गर तो रिश्ते नापाक

धर्म दीन मजहब नहीं आदम की पहचान
जो रिश्तों को निभाता सलिल वही गुणवान

नेह नर्मदा में नहा नित्य नवल जज-धार
रिश्ते सच्चे पलकर सलिल लुटा दे प्यार

प्रेषक: आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
ई मेल; सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम">सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
वार्ता: ०७६१२४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४

3 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्ते के कई पहलुओं को आपने अपनी रचना में समेटा है। बधाई। कहते हैं कि-

    जिस दिन से हो गयी परायी रिश्तों की पहचन।
    रोते रोते विदा हो गयी होठों से मुस्कान।।

    और

    काश ये होता पता रिश्ते महज व्यापार हैं।
    दूर इतना दूर जाता फिर नहीं आता इधर।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman. blogspot. com

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  2. श्यामल से उज्जवल हुआ,
    सलिल सुमन के साथ.
    शब्द साधना को नमन,
    हो प्रभु उन्नत माथ.

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